कारण - धूल-धुएँ भरे वातावरण में रहना, शुद्ध वायु न
मिल पाना, पौष्टिक पदार्थों का
अभाव, अधिक परिश्रम, अधिक भोग, पुरानी खाँसी आदि ।
लक्षण - दमा यानी दम
(सांस) फूलना । इस रोग में रोगी की
साँस जरा-सा
परिश्रम करते ही
यानी चलने से,
लेटने से,
बोलने से
फूलने लगती है
और उसे साँस लेने में कठिनाई महसूस होती है। इसमें खाँसी प्राय: नहीं होती परन्तु कुछ व्यक्तियों में हो
भी सकती है
।
दमा का होम्योपैथिक उपचार
● आर्सेनिक एल्ब 6 - एक
बूंद, इपिकाक 30 - दो
बूंद, सेनेगा Q -चार बूंद, ब्लाटा ओरियेण्टेलिस Q - दस
बूंद, एक्वा -दो
औंस - इन्हें मिला लें ।
यह दो
मात्रायें हैं ।
प्रतिदिन चार मात्रा देने से
दमा की
प्रारम्भिक अवस्था में आराम होता है
।
● इपिकाक - एक
बूंद, एस्पिडोस्पर्मा Q - एक
बूंद, ब्लाटा ओरियेण्टेलिस 3x - एक
बूंद, शुगर ऑफ
मिल्क - 5 ग्रेन-इन्हें मिला लें ।
यह एक
मात्रा है। इस
प्रकार प्रतिदिन पाँच मात्रायें देने से
सभी प्रकार के
दमा में निश्चित ही
आराम होता है
।
● व्लाटा ओरियेण्टेलिस 1x - 2 ग्रेन, इफेड़ोन 1x -1 ग्रेन, इड्रेनेलीन 2x -1 ग्रेन, मकरध्वज 6x - 2 ग्रेन-इन्हें मिला लें ।
यह एक
मात्रा है
। इस
प्रकार प्रतिदिन 4-5 मात्रायें देने से
प्राय: सभी प्रकार के दमा में लाभ होता है
।
● एकोनाइट 1x - 5 बूंद, यवां सैन्टा Q - 30 बूंद, लोबिलिया Q -20 बूंद, व्लाटा ओरियेण्टेलिस Q - 20 बूंद, कैनाबिस इण्डिका Q - 5 बूंद, स्ट्रमोनियम 30 -5 बूंद, एक्वा - 3 औंस - इन्हें मिला लें ।
यह कुल छ:
मात्रायें हैं। प्रतिदिन छ:
मात्रायें देने से
दमा का
खिंचाव घटकर बहुत आराम मिलता है
।
● यर्बा सैन्टा Q - 5 बूंद, बेलाडोना Q - 2 बूंद, एरालिया Q - 3 बूंद, लोविलिया Q - 5 बूंद, क्लोरोफोर्म Q - 5 बूंद, स्ट्रामोनियम 3x - 1 बूंद, एक्वा - 1 औंस -इनको मिला लें ।
यह एक
मात्रा है। इस
प्रकार प्रतिदिन तीन मात्रायें देने से
हर प्रकार के
दमा में लाभ होता है। इससे दमा का
दौरा शीघ्र शान्त होता है
।
● एफिड़ा बल्गेरिस Q - 5 बूंद, ग्रिण्डेलिया रोबस्टा Q - 5 बूंद, लोविलिया इनफ्लेटा Q - 2 बूंद, एकोनाइट Q -1 बूंद, क्लोरोफार्म Q - 5 बूंद, एक्वा1 औंस -इन्हें मिला लें ।
यह एक
मात्रा है
। इस
प्रकार प्रतिदिन चार मात्रा देने से
लाभ होता है
|
पथ्य- ताजा एवं पौष्टिक भोजन लेना चाहिये। ताजे फल
एवं हरी सब्जियाँ पर्याप्त मात्रा में खानी चाहिये ।
चोकरयुक्त आटा प्रयोग करना चाहिये। पीने का
पानी स्वच्छ होना चाहिये ।
शुद्ध वायु में घूमना भी
लाभप्रद है। अधिक श्रम तथा भोग से
बचना चाहिये। गुड़, तेल, सफेद चीनी, मैदा, मछली, अंडा आदि का
प्रयोग न
करें ।
रोग का
उपचार गंभीरतापूर्वक कराना चाहिये।
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